अहिल्याबाई होलकर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) मराठा साम्राज्य की एक प्रमुख शासिका थीं। उनके कुशल शासन और अद्वितीय नेतृत्व के लिए उन्हें इतिहास में सम्मानित स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए और उनके शासनकाल को भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम युग माना जाता है

प्रारंभिक जीवन

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के चौंड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता मानकोजी शिंदे एक साधारण किसान थे। वह धनगढ़ समाज से आते थे। उन्होंने अपनी पुत्री को लिखने और पढ़ने की शिक्षा प्रदान की जो उस समय की महिलाओं के लिए असामान्य बात थी। मराठा साम्राज्य के प्रमुख सरदार और इंदौर के शासक मल्हार राव होलकर ने चौंडी गांव से गुज़रते हुए अहिल्याबाई को मंदिर में देखा और उन के आचरण से प्रभावित हो कर उन्होंने मानकोजी से अपने पुत्र खांडेराव होलकर के लिए उनकी पुत्री अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया। इस प्रकार, अहिल्याबाई का विवाह १७३३ में खांडेराव से हो गया।

 

शासनकाल की शुरुआत

दुर्भाग्यवश १७६७ में युद्ध में खांडेराव की मृत्यु के बाद २९ वर्ष की आयु में युवा रानी विधवा हो गईं। उनके श्वसुर, मल्हार राव होलकर ने उन्हें सती होने से रोका और उनकी क्षमता को पहचान, उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार किया।। १७६६ में श्वसुर मल्हारराव होलकर की मृत्यु और कुछ महीनों पश्चात् पुत्र मालेराव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने मालवा की रानी के रूप में अपना नाम प्रस्तावित किया जिसे पेशवा और होलकर सेना ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। परन्तु दीवान गंगाधर राव और राघोबा ने अहिल्याबाई के राजतिलक का विरोध किया और सैन्य शक्ति ले इंदौर के द्वार पर आ खड़े हुए। इस विरोध का दमन कर अहिल्याबाई मालवा की महारानी बनी और मराठा साम्राज्य की एक निपुण शासिका के रूप में उभरीं।

 
 

राज व्यवस्था

स्वर्णिम काल

लोकमाता अहिल्याबाई का शासन काल मालवा प्रान्त का स्वर्णिम काल कहलाता है। रानी के कार्यों को हम निम्नलिखित दृष्टिकोणों से समझ सकते हैं।

 

रानी अहिल्याबाई ने मौजूदा सरंजमि व्यवस्था को सुदृढ़ किया।  सरदारों को अपनी सेना, जागीर और मुहर प्राप्त थी परन्तु वह सभी रानी के आधीन थे और उन्हें नियमित कर प्रदान करते थे।  मालवा प्रान्त को रू ३२५७०० का वार्षिक कर सरंजमि सरदारों से मिलता था।  इनकी सेनाएं मिलकर मालवा प्रान्त की सेना का एक बड़ा हिस्सा बनती थीं जिसे हुज़रत कहते थे।

 

रानी की दूरदर्शिता की वजह से मालवा प्रान्त समृद्ध और शक्तिशाली हो चला था।  मल्हार राव के शासनकाल में मालवा की वार्षिक आय ७५ लाख रूपये थी जिसे रानी ने बढ़ा कर १ करोड़ ५ लाख ३७ हज़ार कर दिया था। कुशल कर व्यवस्था और पारदर्शी शासन के चलते यह संभव हुआ था।

 

साहूकारों और व्यापारियों को सुरक्षित वातावरण एवं सीमित कर का लाभ मिलता था, अतः पड़ोसी राज्य के व्यापारी भी मालवा को अपना केंद्र बनाने लगे थे। सूरत और मांडू से आये बुनकरों को देवी ने स्वयं महेश्वर में स्थापित किया और महेश्वरी साड़ी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।  यह साड़ियां आज भी देश-विदेश में लोकप्रिय हैं।

 

रानी का दरबार सभी के लिए सुलभ था।  उनके निर्णय, तर्कसंगत, निष्पक्ष और शीघ्र होते थे।  सबके साथ समान व्यवहार किया जाता था। विषय बड़ा हो या छोटा, रानी समस्या का निवारण स्वयं ही  करती थीं।

 

भीलों को उनकी भूमि पर अधिकार दिए और यात्रियों की सुरक्षा का जिम्मा भी दिया जो उनके जीवनयापन का तरीका बना। कृषकों को कर में छूट और भूमि पर अधिकार दिए।  अनाज के भंडारण की उचित व्यवस्था की गई, जिस वजह से रानी के शासन काल में मालवा प्रान्त में सूखा और भुखमरी नहीं फैली।

 

महिला शिक्षा पर ज़ोर दिया। निः संतान विधवाओं  को उनकी संपत्ति पर अधिकार दिए। महिला सुरक्षा और कल्याण पर विशेष ध्यान दिया। 

 

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने सनातन के पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 

  • विदेशी आक्रांतों द्वारा ध्वस्त मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया। 
  • तीर्थयात्रा और धर्मार्थ कार्यों को पुनः शुरू कराया।  
  • ४ धाम, १२ ज्योत्रिलिंग एवं ७ नगरों में निर्माण, पुनर्निर्माण और धर्मार्थ कार्य संपन्न किये।   
  • श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, रामेश्वरम, द्वारका, मथुरा, अयोध्या, हरिद्वार, उज्जैन, बैजनाथ, त्र्यम्ब्केश्वर आदि में यह कार्य सम्पन्न हुए।  
  • उनके कार्य अपने क्षेत्र तक सीमित न होकर देशव्यापी थे।  तीर्थयात्रा का प्रारम्भ कर उन्होंने भारत के एकीकरण का महान कार्य किया।  स्थानीय शिल्पकारों, कलाकारों और पंडितों को भी इसका लाभ मिला।   
  • विध्वंसकारी शक्तियों का उत्तर, सृजन और निर्माण से दे सनातन की महान परंपरा का निर्वहन किया।  यह स्थान आज भी सनातन की आस्था के महत्त्वपूर्ण केंद्र हैं।  
  • यह सारे कार्य खासगी (लोकमाता का निजी धन) या दानार्थ मिले संसाधनों से ही परिपूर्ण किये गए।

महारानी के काल में मालवा मराठा साम्राज्य का सशक्त राज्य बन के उभरा। 

  1. अहिल्याबाई ने एक मजबूत सेना का गठन किया और राज्य की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की।
  2. सूबेदार तुकोजी राव के नेतृत्व में मालवा की सेना का स्थायी टुकड़ा पेशवा की सेवा में समर्पित किया।  
  3. गंगाधर राव और राघोबा की चुनौती का जवाब देने के लिए महिला टुकड़ी का गठन किया।  
  4. १७८७ में चंद्रावतों से युद्ध में रानी ने युद्धभूमि के मध्य से सेना का संचालन और युद्ध में विजय पायी। नाना फड़नवीस ने पेशवा के दरबार में रानी की वीरता की प्रशंसा की।   
  5. १७९५ में १६००० सैनिकों से परिपूर्ण होलकर सेना ने पेशवा के ध्वज के तले, निज़ाम को खरदा के युद्ध में पराजित किया।  होलकर सेना का प्रतिनिधित्व कर रहे तुकोजी राव होलकर को पेशवा से विशेष सम्मान प्राप्त हुआ। 

निधन और विरासत

अहिल्याबाई होलकर का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ। उनके द्वारा स्थापित जन कल्याण और विकास कार्यों ने उन्हें अमर बना दिया। एक कुशल शासिका, निर्भीक योद्धा , न्यायप्रिय और कल्याणकारी रानी और धर्मनिष्ठ नेत्री के रूप में वह एक आदर्श शासक थीं। भारत को एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान देने वाली लोकमाता के कार्य भारतीय संस्कृति के वह महान प्रकाशपुंज हैं जो इस  राष्ट्र और समाज को वर्षों तक प्रकाशित करते रहेंगे।